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Saturday, January 4, 2014

Damini

This poem is a creation of my lovely sister Manjari Joshi and is dedicated to "Damini", who was raped and died after a great ordeal. It's been more than an year and many people have forget about the heinous history. This is a request to all to keep the candles of harmony ignited so that humanity is kept alive in the heart of every individual.

माँ मैं घर वापस आऊ कैसे ?                                                    
अपने जख्मो को छुपाऊ कैसे ?
अपना दर्द भुलाऊ कैसे ?
माँ मैं घर वापस आऊ कैसे ?

लोगो की गन्दी नज़रो से,खुद को बचाऊ कैसे ?
अपनी गन्दी किस्मत को,अब मैं झुठलाऊ कैसे ?
माँ मैं घर वापस आऊ कैसे ?

जीने की तम्मना तो अब भी है,
आगे बढ़ने की चाहत अब भी है,
अपनी दुनिया बसाने का सपना अब भी है,
पर मैं इन कदमो से खुद चल कर आऊ कैसे ?                                            
माँ मैं घर वापस आऊ कैसे?


जो आज खड़े है साथ मेरे,क्या कल भी देंगे साथ मेरा ?
जो कर रहे दुआ मेरे जीने क़ी,क्या कल देंगे आजादी जीने की ?         

क्या वो कल मुझे अपना लेंगे ?
या गलती तो इसी क़ी है,कह कर फिर रुला देंगे।
मैं वो सम्मान वो अधिकार,फिर से पाऊ कैसे ?
माँ मैं घर वापस आऊ कैसे ?

दर्द अब माँ सहा नही जाता,
वो दिन माँ भुलाया नही जाता,
अपनी सिसकिया बंद कराऊ कैसे ?
माँ मैं घर वापस आऊ कैसे ?                                             

लगा लो एक बार गले से माँ,
मैं जी भर रोना चाहती हुँ
रखने दो गोद मैं सिर,
मैं फिर सोना चाहती हुँ.
पर अब मैं ये सिर भी उठाऊ कैसे ?
माँ मैं घर वापस आऊ कैसे ?





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